2015-10-08 12:02:00

प्रेरक मोतीः सन्त पेलाजिया (चौथी शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 08 अक्टूबर सन् 2015:

अन्तियोख या अन्ताखिया की पेलाजिया मार्ग्रेट का पर्व रोमी शहादतमनामे के अनुसार 08 अक्टूबर को मनाया जाता है। चौथी शताब्दी की युवती पेलाजिया अन्तियोख में मोतियाँ बेचा करती थी तथा अक्सर ख़ुद भी मोतियों की माला गले में पहना रहती थीं इसीलिये इन्हें मार्ग्रेट नाम से भी पुकारा जाता था। अन्तियोख की सुन्दर, सुशील एवं धनवान युवती, मार्ग्रेट पेशे से एक अभिनेत्री थीं।

अन्तियोख में एक धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के दौरान उनकी मुलाकात एडेस्सा के धर्माध्यक्ष सन्त नोन्नुस से हो गई जो मार्ग्रेट के सौन्दर्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। मुलाकात के दूसरे दिन मार्ग्रेट, धर्माध्यक्ष नोन्नुस का प्रवचन सुनने गई तथा इतना प्रभावित हुई कि उन्होंने धर्माध्यक्ष से बपतिस्मा का अनुरोध कर डाला। मार्ग्रेट ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया तथा अपनी अपार सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा कलीसिया को, निर्धनों की सेवा के लिये, अर्पित कर दिया। तदोपरान्त, अपनी बीती जीवनचर्या को बिलकुल भुला देने के लिये उन्होंने पुरुषों का सा परिधान पहन लिया तथा अन्तियोख से भाग निकली। वे जैरूसालेम गई तथा जैतून पहाड़ी पर एक गुफा में उन्होंने एकान्तवास शुरु कर दिया। वे त्याग, तपस्या एवं प्रार्थना में जीवन यापन करने लगी।

उनके पुरुषनुमा कपड़ों के कारण वे "बग़ैर दाढ़ी के साधू" नाम से विख्यात हो गई। उनके स्त्री होने का पता बहुत समय तक किसी को नहीं चल पाया था किन्तु जब इसका पता चला तो लोग बहुत क्रुद्ध हुए। बताया जाता है कि ख्रीस्तीयों पर अत्याचार करनेवाले दियोक्लेशियन सम्राट के सैनिकों से उन्होंने उनकी शिकायत कर दी ताकि उन्हें दण्डित किया जा सके तथा ख्रीस्तीय धर्म के परित्याग हेतु बाध्य किया जा सके। पेलाजिया के शील हरण के उद्देश्य से सैनिक गुफा तक पहुँच गये किन्तु इससे पहले कि वे उनका शील भंग करते पेलाजिया घाटी में कूदकर शहीद हो गई। चौथी शताब्दी की सन्त पेलाजिया या मार्ग्रेट का पर्व 08 अक्टूबर को मनाया जाता है।     

चिन्तनः धन्य हैं जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं, स्वर्ग राज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते तथा तरह तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ – स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा। (सन्त मत्ती 5: 10-12)   








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