2015-08-28 09:18:00

प्रेरक मोतीः सन्त अगस्टीन (354-430 ई.)


वाटिकन सिटी, 28 अगस्त सन् 2015:

हिप्पो के अगस्टीन का जन्म, रोमी प्रशासित, उत्तरी अफ्रीका के आलजिरिया में, 13 नवम्बर, सन् 354 ई. को हुआ था। उनके पिता पात्रिसियुस एक ग़ैरविश्वासी थे जबकि उनकी माता सन्त मोनिका ख्रीस्तीय धर्मानुयायी थीं। अगस्टीन ने अपने जीवन के कई वर्ष अय्याशी, अन्धविश्वास एवं अपधर्म में बिताये थे किन्तु उनकी माता सन्त मोनिका की अथक प्रार्थनाओं द्वारा उनका मनपरिवर्तन हुआ तथा उन्होंने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन किया।      

सन्त अगस्टीन हिप्पो रेजियुस के धर्माध्यक्ष थे। वे रोमी प्रशासित अफ्रीका के लैटिन ज्ञाता, दर्शनशास्त्री एवं धर्मतत्ववैज्ञानिक थे। सामान्यतः, अगस्टीन को सब समय के सर्वाधिक महान ख्रीस्तीय विचारक माना गया है। पश्चिमी ख्रीस्तीय धर्म के विकास में उनकी कृतियों का अत्यधिक प्रभाव रहा है।

उनके समकालीन धर्मतत्व वैज्ञानिक जेरोम के अनुसार, अगस्टीन ने, "प्राचीन विश्वास को नये ढंग  से पुनर्स्थापित किया।" अपने जीवन के आरम्भिक काल में अगस्टीन मानीवाद के प्रति आकर्षित रहे और उसके बाद प्लोटीनुस के प्लेटोनीवाद में उनकी अभिरुचि रही। मनपरिवर्तन एवं ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लेने के उपरान्त अगस्टीन ने दर्शन एवं ईशशास्त्र पर अपने विचारों को विकसित किया जिसमें उन्होंने विभिन्न विधियों एवं भिन्न भिन्न परिप्रेक्ष्यों को समाहित किया। अगस्टीन का विश्वास था कि प्रभु येसु ख्रीस्त की कृपा मानव स्वतंत्रता के लिये अपरिहार्य थी इसीलिये उन्होंने आदि पाप एवं न्यायसंगत युद्ध की संकल्पनाओं की रचना कर उनका प्रस्ताव किया था।

जब पश्चिमी रोमन साम्राज्य का विघटन शुरु हो रहा था, अगस्टीन ने काथलिक कलीसिया की संकल्पना "ईश्वर के आध्यात्मिक शहर" रूप में विकसित की जो भौतिक जगत से बिलकुल अलग था। अगस्टीन के विचारों ने मध्ययुगीन वैश्विक दृष्टि को गहनतम ढंग से प्रभावित किया। अगस्टीन का,  "ईश्वर का आध्यात्मिक शहर"  कलीसिया की पहचान बन गया, ईश्वर की आराधना करनेवाला समुदाय।

सन् 387 ई. में, ग़ैरविश्वासी से विश्वासी बने, अगस्टीन ने बपतिस्मा ग्रहण किया, पुरोहित अभिषिक्त हुए, हिप्पो के धर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये तथा एक विख्यात काथलिक लेखक रूप में प्रतिष्ठापित हुए। पुरोहितों के लिये उन्होंने धर्मसमाज की स्थापना की तथा काथलिक कलीसिया में अब तक के महानतम सन्तों में उनकी गिनती हुई। अपने मनपरिवर्तन के बाद उन्होंने अपना अधिकाधिक समय उदार कार्यों एवं प्रार्थना में व्यतीत किया। उनके कक्ष की दीवार पर यह वाक्य लिखा थाः "यहाँ हम किसी के बारे में बुरा नहीं बोलते।" सन्त अगस्टीन ने अपधर्म पर विजय पाई, अकिंचनता एवं दीनता का वरण किया, निर्धनों की मदद की, समारोहों एवं सभाओं में प्रवचन करते रहे तथा मृत्युपर्यन्त भक्तिपूर्वक प्रार्थना एवं मनन चिन्तन में लगे रहे। एक बार वे पुकार उठे थे, "प्रभु, बहुत देर से मैंने तुझे जाना, बहुत देर बाद मैंने तुझसे प्यार करना शुरु किया", तथापि, अपने पवित्र जीवन द्वारा, निश्चित्त रूप से, वे उन सब पापों पर पश्चातापर कर चुके थे जो उन्होंने अपने मनपरिवर्तन से पूर्व किये थे।

28 अगस्त, सन् 430 ई. को अगस्टीन की निधन हो गया था। सन्त अगस्टीन काथलिक कलीसिया के सन्त, कलीसिया के आचार्य तथा अगस्टीनियन धर्मसमाज के संस्थापक एवं संरक्षक हैं। वे, मद्य बनानेवालों, प्रेस में काम करनेवालों, नेत्र रोग से ग्रस्त लोगों तथा ईशशास्त्रियों के भी संरक्षक सन्त हैं। सन्त अगस्टीन का पर्व 28 अगस्त को मनाया जाता है।    

चिन्तनः अपने जीवन में चमत्कार के लिये हम पूर्ण रूप से प्रभु ईश्वर पर भरोसा रखें।








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