2015-05-22 11:41:00

प्रेरक मोतीः सन्त रीता (1381-1457) (22 मई)


वाटिकन सिटी, 22 मई सन् 2015:

इटली के स्पोलेत्तो नगर में रीता का जन्म, एक कुलीन परिवार में, सन् 1381 ई. को हुआ था। बाल्यकाल से ही उनका मन प्रार्थना एवं उदारता के कार्यों में लग गया था इसलिये 16 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने माता पिता से किसी धर्मसंघ में भर्ती होने की अनुमति मांगी थी किन्तु माता पिता रीता के ब्याह की व्यवस्था बहुत पहले कर चुके थे। 16 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह कर दिया गया। वे एक अच्छी पत्नी एवं माँ सिद्ध हुई किन्तु उनके पति हिंसक प्रवृत्ति के थे। प्रायः वे अपना गुस्सा पत्नी पर उतारा करते थे। अपनी सन्तानों को भी उन्होंने अपनी ही तरह दुष्टता की सीख दी थी। बच्चे भी पिता के पद चिन्हों पर चलते रहे और रीता की पीड़ा का कारण बने। रीता प्रायः पति एवं बच्चों की हिंसा का शिकार बनीं किन्तु बड़े धैर्य के साथ वे अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों को पूरा करती रही। वे गिरजाघर जाकर ख्रीस्तयाग में भाग लेती, प्रार्थना में घण्टों व्यतीत किया करती तथा पति एवं बच्चों के मनपरिवर्तन के लिये दुआ करती रहती थी।

विवाह के लगभग 20 वर्षों बाद रीता के पति को शत्रु के वार का सामना करना पड़ा। घात लगाकर शत्रु ने उन्हें छुरा भोंक दिया किन्तु मरने से पहले पति को पछतावा हुआ इसलिये कि रीता उनके लिये हमेशा प्रार्थना करती रहती थीं जबकि उन्होंने उन्हें केवल दुख दिया था। पति की हत्या के तुरन्त बाद उनके दो पुत्रों की भी मृत्यु हो गई तथा रीता संसार में अकेली रह गई। प्रार्थना, मनन चिन्तन, उपवास एवं भले कार्यों में वे अपना जीवन व्यतीत करने लगीं। तदोपरान्त उन्होंने उम्ब्रिया के काशिया स्थित अगस्टीन धर्मसंघ में भर्ती होने की इच्छा व्यक्त की। धर्मसंघ में उन्हें दाखिला मिल गया और तब से उनका जीवन त्याग, तपस्या एवं आज्ञाकारिता में व्यतीत हुआ।

प्रभु येसु के दुखभोग पर रीता घण्टों मनन किया करती थीं। एक दिन जब वे प्रार्थना में लीन थीं तब उनके मुख से निकला, "मुक्तिदाता प्रभु येसु मुझे आप ही की तरह कष्ट भोगने दीजिये" और उसी क्षण क्रूस के मुकुट से एक काँटा गिरकर उनके माथे पर लग गया। माथे पर एक गहरा घाव बन गया था जिससे वे आजीवन पीड़ित रहीं। 22 मई, सन् 1457 ई. को पत्नी, माता एवं अगस्टीन धर्मसंघ की धर्मबहन रीता का निधन हो गया। सन्त रीता असम्भव मामलों की संरक्षिका घोषित की गई हैं उनका पर्व 22 मई को मनाया जाता है।   

चिन्तनः प्रार्थना एवं मनन चिन्तन द्वारा हम भी जीवन की कठिनाइयों को सहने का सम्बल प्राप्त करें तथा पीड़ाओं को प्रभु के प्रति अर्पित कर अपना जीवन साकार करें।  








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