नई दिल्ली शुक्रवार 6 मार्च, 2015 (बीबीसी, नभट) निर्भया गैंग रेप
कांड से जुड़ी विवादित डॉक्युमेंट्री के प्रसारण पर भारत सरकार के बैन के बावजूद ब्रिटिश
मीडिया कंपनी बीबीसी ने इसका प्रसारण कर दिया । हालांकि, बीबीसी ने कहा है कि भारत में
इस डॉक्युमेंट्री को टेलेकास्ट करने की उसकी योजना नहीं है।
बीबीसी के चैनल-4 ने बुधवार 4 मार्च की रात 'इंडियाज़ डॉटर' नाम की इस डॉक्युमेंट्री
का प्रसारण इंग्लैंड के साथ कुछ अन्य देशों मे भी किया। बीबीसी ने अपने एक बयान में कहा
है कि दर्शकों के जबरदस्त इंट्रेस्ट को देखते हुए इसका प्रसारण कर दिया गया।
गृह मंत्रालय को भेजे एक संदेश में बीबीसी ने कहा है कि भारत सरकार के निर्देश का
पालन करते हुए वह डॉक्युमेंट्री का प्रसारण भारत में नहीं करेगा। इसी संदेश में ब्रिटिश
मीडिया कंपनी ने कहा है कि उसने बुधवार की रात दस 10 ब्रिटेन में इसका प्रसारण किया है।
ब्रिटिश फिल्ममेकर लेस्ली उडविन द्वारा निर्मित इस डॉक्युमेंट्री का प्रसारण दरअसल भारत
सहित कई देशों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) को किया जाना था। हालांकि, मंगलवार
को सोशल मीडिया और बुधवार सुबह संसद में बवाल के बाद केंद्र सरकार ने विधिवत कोर्ट ऑर्डर
लेकर इसके प्रसारण पर रोक लगा दी।
इसका विरोध करने वालों का कहना है कि यह फ़िल्म बलात्कारी का महिमामंडन करती है और पूरे
मामले को सनसनीख़ेज़ तरीक़े से पेश करती है.
यह अलग बात है कि ज़्यादातर लोगों ने यह फ़िल्म नहीं देखी है.
विदित हो कि ब्रितानी फ़िल्म निर्माता लेस्ली उडविन ने भारत को झकझोर देने वाले निर्भया बलात्कारकांड पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'इंडियाज़ डॉटर' पर दो साल तक काम किया।
एक घंटे लंबी इस फ़िल्म में पीड़िता के अभिभावकों, दोषियों और उनके परिवारों और वकीलों के विस्तृत साक्षात्कारों के साथ ही बीच-बीच में उस घटना का नाट्य रूपांतरण है.
कई लोगों को लगता है कि भारत प्रतिबंधों का देश बन गया है- फ़िल्म, किताब और हाल ही में एक राज्य में गोमांस पर प्रतिबंध.
अभी तक यह साफ़ नहीं है कि डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध, अपनी छवि को लेकर सतर्क रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली असहिष्णु भारत सरकार के कारण लगा है या इसलिए कि गृह मंत्रालय ने खुद को मुश्किल स्थिति में पाया क्योंकि उसके पास कोई ख़ुफ़िया जानकारी तक नहीं थी कि दिल्ली के एक जेल में एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्माई गई और जो प्रसारित होने जा रही थी।
कई लोगों को लगता है कि फ़िल्म पर प्रतिबंध से भारत की छवि को सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है।
जब प्रधानमंत्री मोदी निवेश और पर्यटन के लिए विश्व में भारत की छवि को चकमाने में लगे हैं, तो इस तरह की जल्दीबाज प्रतिक्रिया से नुकसान हो सकता है।
सलिल त्रिपाठी कहते हैं, "कोई भी समझदार आदमी फ़िल्म पर प्रतिबंध की बात नहीं कर सकता. यह ग़लत है."
कई लोगों को लगता है कि भारत की छवि इससे ज़्यादा ख़राब होगी कि उसकी सरकार बोलनी की आज़ादी देने की समर्थक नहीं है, बनिस्बत, मुकेश सिंह की निंदनीय बातों के।
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