2015-03-06 09:41:00

दैनिक मिस्सा पाठ


शुक्रवार- 6.5.15

दैनिक मिस्सा पाठ

पहला पाठ- उत्पि. 37꞉ 3-4,12-13

3) इस्राएल अपने सब दूसरे पुत्रों से यूसुफ़ को अधिक प्यार करता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे की सन्तान था। उसने यूसुफ़ के लिए एक सुन्दर कुरता बनवाया था। 4) उसके भाइयों ने देखा कि हमारा पिता हमारे सब भाइयों से यूसुफ़ को अधिक प्यार करता है; इसलिए वे उस से बैर करने लगे और उस से अच्छी तरह बात भी नहीं करते थे। 12) यूसुफ़ के भाई अपने पिता की भेड़ बकरियाँ चराने सिखेम गये थे। 13) इस्राएल ने यूसुफ़ से कहा, ''तुम्हारे भाई सिखेम में भेडें चरा रहे है। मैं तुम को उनके पास भेजना चाहता हूँ।''  यूसुफ़ अपने भाइयों की खोज में निकला और उसने उन को दोतान में पाया।18) उन्होंने उसे दूर से आते देखा था और उसके पहुँचने से पहले ही वे उसे मार डालने का षड्यन्त्र रचने लगे।19) उन्होंने एक दूसरे से कहा, ''देखो, वह स्वप्नद्रष्टा आ रहा है। 

20) चलो, हम उसे मार कर किसी कुएँ में फेंक दें। हम यह कहेंगे कि कोई हिंस्र पशु उसे खा गया है। तब हम देखेंगे कि उसके स्वप्न उसके किस काम आते हैं।''  21) रूबेन यह सुन कर उसे उनके हाथों से बचाने के उद्देश्य से बोला, ''हम उसकी हत्या न करें।''  22) तब रूबेन ने फिर कहा, ''तुम उसका रक्त नहीं बहाओ। उसे मरूभूमि के कुएँ में फेंक दो, किन्तु उस पर हाथ मत लगाओ।'' वह उसे उनके हाथों से बचा कर पिता के पास पहुँचा देना चाहता था। 23) इसलिए ज्यों ही यूसुफ़ अपने भाइयों के पास पहुँचा, उन्होंने उसका सुन्दर कुरता उतारा और उसे पकड़ कर कुएँ में फेंक दिया। 24) वह कुआँ सूखा हुआ था, उस में पानी नहीं था। 25) इसके बाद से वे बैठ कर भोजन करने लगे। उन्होंने आँखें ऊपर उठा कर देखा कि इसमाएलियों का एक कारवाँ गिलआद से आ रहा है। वे ऊँटों पर गोंद, बलसाँ और गन्धरस लादे हुए मिस्र देश जा रहे थे। 26) तब यूदा ने अपने भाइयों से कहा, ''अपने भाई को मारने और उसका रक्त छिपाने से हमें क्या लाभ होगा?  27) आओ, हम उसे इसमाएलियों के हाथ बेच दें और उस पर हाथ नहीं लगायें; क्योंकि वह तो हमारा भाई और हमारा रक्तसम्बन्धी है।'' उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली। 28) उस समय मिदयानी व्यापारी उधर से निकले। उन्होंने यूसुफ़ को कुएँ से निकाला और उसे चाँदी के बीस सिक्कों में इसमाएलियों के हाथ बेच दिया और वे यूसुफ़ को मिस्र देश ले गये।

सुसमाचार पाठ- मती. 21꞉33-43

33) ''एक दूसरा दृष्टान्त सुनो। किसी भूमिधर ने दाख की बारी लगवायी, उसके चारों ओर घेरा बनवाया, उस में रस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया। तब उसे असामियों को पट्ठे पर दे कर वह परदेश चला गया। 45) महायाजक और फरीसी उनके दृष्टान्त सुन कर समझ गये कि वह हमारे विषय में कह रहे हैं। 46) वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु वे जनता से डरते थे; क्योंकि वह ईसा को नबी मानती थी। 34) फसल का समय आने पर उसने फसल का हिस्सा वसूल करने के लिए असामियों के पास अपने नौकरों को भेजा। 35) किन्तु असामियों ने उसके नौकरों को पकड़ कर उन में से किसी को मारा-पीटा, किसी की हत्या कर दी और किसी को पत्थरों से मार डाला। 36) इसके बाद उसने पहले से अधिक नौकरों को भेजा और असामियों ने उनके साथ भी वैसा ही किया। 37) अन्त में उसने यह सोच कर अपने पुत्र को उनके पास भेजा कि वे मेरे पूत्र का आदर करेंगे। 38) किन्तु पुत्र को देख कर असामियों ने एक दूसरे से कहा, 'यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत पर कब्जा कर लें।'  39) उन्होंने उसे पकड़ लिया और दाखबारी से बाहर निकाल कर मार डाला। 40) जब दाखबारी का स्वामी लौटेगा, तो वह उन असामियों का क्या करेगा?''  41) उन्होंने ईसा से कहा, ''वह उन दृष्टों का सर्वनाश करेगा और अपनी दाखबारी का पट्ठा दूसरे असामियों को देगा, जो समय पर फसल का हिस्सा देते रहेंगे''। 42) ईसा ने उन से कहा, ''क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में कभी यह नहीं पढा?  करीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर निकाल दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया है। यह प्रभु का कार्य है। यह हमारी दृष्टि में अपूर्व है। 43) इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ- स्वर्ग का राज्य तुम से ले लिया जायेगा और ऐसे राष्ट्रों को दिया जायेगा, जो इसका उचित फल उत्पन्न करेगा।  








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