2015-03-05 16:20:00

दुनियादारी के घेरे में अन्यों की आवश्यकताओं को देख पाना असम्भव


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 5 मार्च 2015 (वीआर सेदोक)꞉ सांसारिकता हमें ग़रीबों एवं उनके घावों को देखने नहीं देती। वह आत्मा में अंधकार का पर्दा डाल देती है जिसके कारण दुःखों से परेशान ग़रीबों को देख पाने में हम असमर्थ हो जाते हैं।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 5 मार्च को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मार्था के प्रार्थनालय में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कहा।

हम कई दुःखी और कठिनाई में पड़े व्यक्ति से मुलाकात कर सकते हैं किन्तु यदि हमारा दिल सांसारिकता की ओर झुका है तो उनके दुःखों को हम कभी महसूस नहीं कर सकते। दुनियादारी के घेरे में हम अन्यों की आवश्यकताओं को देख नहीं सकते हैं। हम न गिरजा जा सकते, न प्रार्थना कर सकते और न ही अपने अन्य कर्तव्यों पर ध्यान दे सकते हैं।″ 

संत पापा ने कहा कि येसु ने अपने दुखभोग के पूर्व ऐसे ही लोगों से लिए पिता से प्रार्थना की थी, ″पिता! तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, उन्हें अपने नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रख...″  

प्रवचन में संत पापा ने धनी आदमी के दृष्टांत पर चिंतन करते हुए कहा कि वह धनवान मखमल के वस्त्र पहने प्रतिदिन दावत उड़ाते हुए जीवन व्यतीत कर रहा था। उन्होंने कहा कि उस धनी आदमी के किसी बुरे आचरण को नहीं दर्शाया गया है अतः हो सकता है कि वह अपने आप में एक बहुत धर्मी व्यक्ति था। शायद उसने सभी निर्धारित प्रार्थनाएँ पूरी की हो, पुरोहितों को काफी दान भी दिया हो और जिससे कारण वह सम्मानित किया गया हो किन्तु अपने दरवाजे पर पड़े रहने वाले ग़रीब लाजरूस की आवश्यकता को वह समझ ही नहीं पाया।

संत पापा ने कहा कि बेचारा, ग़रीब, भूखा और घाव से भरा लाजरूस जरूरतमंद व्यक्ति का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि धनी व्यक्ति की आत्मा की आँखों में अँधेरा छा गया था जिसके कारण वह नहीं देख सका। वह मात्र अपने जीवन को ही देख पाया। वह बुरा नहीं था किन्तु बीमार था सांसारिकता के रोग से ग्रस्त। वह एक कृत्रिम दुनिया में जी रहा था जिसको उसने खुद बनाया था। दुनियादारी आत्मा को सन्न कर देता है जिसके कारण व्यक्ति वास्तविक संसार को देख नहीं पाता।

संत पापा ने कहा कि इस कहानी में दो मुख्य बातें हैं – उस व्यक्ति के लिए अभिशाप जो दुनिया पर भरोसा रखता है तथा उस व्यक्ति के लिए आशीर्वाद जो ईश्वर पर भरोसा रखता है। धनी आदमी ईश्वर से दूर था तथा उसकी आत्मा शून्य थी। वह एक नमकीन भूमि बन चुका था जहाँ लोगों का रहना सम्भव नहीं था क्योंकि उसमें स्वार्थ भरा था इस प्रकार उसका नाम भी मिट चुका था। संत पापा ने कहा कि इस रोग से चंगाई प्राप्त करना कठिन है।

संत पापा ने उपस्थित विश्वासियों को सचेत करते हुए कहा कि यदि हमारा हृदय दुनियादारी में लिप्त है तो हम अपनी पहचान खो देंगे। उन्होंने कहा, ″किन्तु हम अनाथ नहीं है जीवन के अंतिम क्षण तक हमें आशा है कि हमारे एक पिता हैं जो हमें नहीं छोड़ते। हम उन्हें अपना जीवन अर्पित करें।″

 








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