2015-01-27 11:19:00

नई दिल्लीः धर्म को संघर्ष का कारण न बनायें, राष्ट्रपति मुखर्जी


नई दिल्ली, मंगलवार, 27 जनवरी 2015 (ऊका समाचार): भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि राजनैतिक भाषण जो लोगों के दिलों पर घाव करते हैं वे भारत के पारम्परिक लोकाचार के लिये "घृणित" हैं।   

गणतंत्र दिवस की पूर्व सन्ध्या राष्ट्र को सम्बोधित अपने पारम्परिक सन्देश में राष्ट्रपति ने कहा कि धर्म को संघर्ष का कारण नहीं बनाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा, "जब राजनैतिक भाषण उन्मादी प्रतिस्पर्धा बन जाती है तब लोकतंत्र में निहित स्वतंत्रता कभी-कभी कष्टप्रद परिणाम उत्पन्न करती है जो हमारी परम्परागत प्रकृति के विरुद्ध है।"

उन्होंने कहा, "जिव्हा की हिंसा लोगों के दिलों में घाव करती तथा उन्हें घायल कर देती है।"  

महात्मा गाँधी को उद्धृत कर राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, "धर्म एकता की शक्ति है जिसे हम संघर्ष का कारण नहीं बना सकते।"   

धर्म के नाम पर विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में ढाई जा रही हिंसा की राष्ट्रपति मुखर्जी ने कड़ी निन्दा की और इस बात पर बल दिया कि भारत ने सदैव धार्मिक समानता पर भरोसा जताया है। उन्होंने कहाः "ऐसे अन्तरराष्ट्रीय परिवेश में जहाँ कई देश धर्म के नाम पर हिंसा के दल-दल में फँस रहे हैं, भारत की सौम्य शक्ति का सर्वाधिक शक्तिशाली उदाहरण धर्म एवं राजव्यवस्था के बीच सम्बन्धों की परिभाषा में निहित है।"

राष्ट्रपति महोदय ने कहाः "हमने सदैव धार्मिक समानता पर अपना विश्वास व्यक्त किया है जहाँ प्रत्येक धर्म कानून के समक्ष बराबर है तथा प्रत्येक संस्कृति दूसरे में मिलकर एक सकारात्मक गतिशीलता की रचना करती है।" उन्होंने कहाः "भारत की प्रज्ञा सिखाती है कि "एकता ताकत है, प्रभुता कमज़ोरी।"      








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