2015-01-08 18:02:00

कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन


मित्रो, हर प्राणी मुक्ति चाहता है, आन्तरिक आनन्द के लिये तरसता है और मन की शांति चाहता है। विश्वास मुक्ति प्राप्ति का एक सशक्त साधन है। विश्वास ईश्वर की ओर से मानव को दिया एक अनुपम वरदान है। हर धर्म इस बात की शिक्षा अलग-अलग तरीके से देता है। प्रत्येक धर्म हमें विश्वास करना सिखलाता है। यह हमें बतलाता है कि विश्वास करने से हमारा जीवन अर्थपूर्ण हो जायेगा और हम ईश्वर तक पहुँच जायेंगे। हम ईश्वर को पा लेंगे। हमें परम आनन्द मिलेगा और हमें ईश्वर से एक होने की अनन्त खुशी प्राप्त होगी।

 मित्रो, आखिर विश्वास क्या है? क्या यह हमारा मनोभाव है हमारा प्रेमपूर्ण रिश्ता है? क्या यह ईश्वर पर हमारी आस्था है क्या यह भलाई, अच्छाई और सच्चाई में हमारा भरोसा है? क्या यह हमारी आंतरिक ताकत है जिससे हम किसी सिद्धांत या मूल्य के लिये जीने के लिये समर्पित हो जाते हैं? क्या यह ईश्वरीय वरदान है जिसे पाकर हम आलोकित हो जाते हैं और ईश्वर को पाने के लिये अपना सबकुछ लगा देते है?

शाब्दिक अर्थ पर ग़ौर करें तो हम पाते हैं कि ‘विश्वास’ दो शब्दों के मेल से बना है ‘वि’ और ‘श्वास’ । ‘वि’ एक संस्कृत उपसर्ग है जिसका एक अर्थ है महत्व देना और ‘श्वास’ का अर्थ है साँस अर्थात् जीवन। इस तरह से विश्वास का एक अर्थ होगा जीवन को महत्वपूर्ण बनाना। जीवन को अर्थ पूर्ण बनाना। हम कह सकते हैं विश्वास करना अर्थात् सचमुच जीवित रहना। अच्छाई, भलाई और सच्चाई के लिये जीवित रहना. दुःख उठाना और उसमें आनन्द प्राप्त करना। 

कई ऋषि मुनियों ने इस विभिन्न तरह से इसकी व्याख्या की है। विश्वास से हमारे भय दूर हो जाते हैं, किसी ने कहा विश्वास से हमें आंतरिक रोशनी प्राप्त होगी तो किसी ने कहा विश्वास दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है। विश्वास से हमें चँगाई प्राप्त होगी मेल-मिलाप और सम्मान की भावना बढ़ेगी, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना बढ़ेगी और मानव निर्भीक होकर ईश्वर को प्राप्त करेगा और दूसरे को भी ईश्वर को प्राप्त करने में सहायक होगा।

यही कारण है कि विश्व के जो भी धर्म हैं उनमें इस बात की समानता है कि वे लोगों को तीन बातों को प्रमुखता से बतलाते हैं। विश्वास करना, पूजन पद्धति में हिस्सा लेना और नियमों का पालन करना। काथलिक कलीसिया भी इन तीनों बातों पर अपना विशेष ध्यान देती रही है ताकि व्यक्ति जीवन की अंतिम मंजिल अर्थात् ईश्वर तक पहुँच सके।

काथलिकों के महाधर्मगुरु संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने लोगों के विश्वास को सुदृढ़ करने के लिये ऐतिहासिक द्वितीय वाटिकन महासभा के आरंभ होने 50 वर्ष होने के  अवसर पर वर्ष 2012 -13 को विश्वास वर्ष घोषित किया है। विश्वास का आरंभ 11 अक्तूबर, सन् 2012 को आरंभ हुआ था और इसका समापन अगले वर्ष 24 नवम्बर 2013 को समाप्त हो गया।

विश्वास का वर्ष घोषित करते हुए संत पापा ने अपने दिल की प्रेरणा से पूरी काथलिक कलीसिया को एक पत्र लिखा जिसे ‘पोर्ता फीदेई’ अर्थात् ‘विश्वास का द्वार’ के नाम से जाना गया। संत पापा चाहते हैं कि व्यक्ति अपने विश्वास को मजबूत करे और इसके लिये वह काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा का अध्ययन करे, उसे समझे उसके अनुसार जीये और उसी धार्मिकता और आध्यात्मिकता का प्रचार करे जिसे उसका जीवन तो ईश्वरमय हो उसके पड़ोसी उससे प्रेरणा पायें और एक ऐसे समाज का निर्माण हो जहाँ लोगों में परस्पर प्रेम हो, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना हो और लोग अपनी क्षमताओं, स्रोतों और योग्यताओं का उपयोग जनकल्याण में लगाना अपना परम धर्म समझें।

मित्रो, हम आपको बतला दें कि बोलचाल की भाषा में काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा है - ख्रीस्तीय मूलभूत सच्चाई जिसे इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि आम लोग समझ सकें।

मित्रो हम आपको बतला दें कि काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा को कौंसिल ऑफ़ ट्रेंट की तरह चार भागों में बाँटा गया है। इन्हें चार स्तंभ कहा गया जिनपर पूरी धर्मशिक्षा आधारित है। संत पापा धन्य जोन ने इन्हें ‘एक उत्कृष्ट स्वर की चार लय’ कहा है। विश्वास, संस्कार, नियम और हे पिता हमारे प्रार्थना।

पहले भाग में लेक्स क्रेदन्दी अर्थात् विश्वास की घोषणा दूसरे भाग में लेक्स चेलेब्रान्दी अर्थात् ख्रीस्तीय रहस्यों के समारोहों और संस्कारों की चर्चा है तो तीसरे भाग में लेक्स विवन्दी अर्थात्  येसु मसीह के जीवन को बतलाया गया है। और अंतिम भाग में लेक्स ओरन्दी अर्थात् ख्रीस्तीय प्रार्थना के बारे में चर्चा की गयी है। मित्रो, काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा को संत पापा जोन पौल द्वितीय ने 11 अक्तूबर सन् 1992 को ‘कैटकिज़्म ऑफ़ द कैथोलिक चर्च’ अर्थात् ‘काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा’ को प्रस्तुत करते हुए कहा था कि विश्वास को मजबूत करने के लिये इसकी धर्मशिक्षा बहुत ही सहायक साधन सिद्ध होगी।

द्वितीय वाटिकन महासभा के पचास सालों के बाद काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा विश्वासियों की आध्यात्मिक भूख की तृप्ति तो करेगा ही उनके विश्वास को भी मजबूत करेगा ताकि उनका जीवन येसुमय और अर्थपूर्ण बनेगा जिससे न केवल विश्वासियों को पर उन्हें भी जो उनके संग जीते हैं भले अच्छे और सार्थक जीवन जीने का आध्यात्मिक लाभ मिलेगा।

हमारी आशा है धर्मशिक्षा है श्रोताओं और पाठकों को सफल और अर्थपूर्ण जीवन देने में सहायक सिद्ध होगी।

मित्रो, पिछले सप्ताह हमने कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अन्तर्गत जानकारी प्राप्त की काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में वर्णित आदि पाप के परिणाम के बारे में । आज भी हम जानकारी प्राप्त करेंगे येसु ख्रीस्त पर हमार विश्वास के बारे में (436

मित्रो हम आपको बतला दें कि ' क्राइस्ट ' नाम इब्रानी भाषा के मसीह शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है  ' अभिषिक्त '। यह नाम येसु के लिये उचित हो गया क्योंकि उन्होंने कुछ मानव के लिये किया वह एक दिव्य मिशन था। उन्होंने उस पूर्ण कर दिया और क्राइस्ट या ख्रीस्त के नाम को पूर्ण कर दिया या हम कहें इसे अर्थपूर्ण बना दिया।

इस्राएल में जो भी ईश्वर के नाम पर अपने आप को समर्पित करते थे उन्हें अभिषिक्त माना जाता था। अपने समर्पण को ईश्वर के नाम पर करनेवालों में राजा, पुरोहित और नबी प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसलिये यह ज़रूरी था कि मसीहा जिसने अपने आपको पूर्ण रूप से ईश्वर के लिये समर्पित कर दिया अभिषिक्त हो। इसीलिये येसु के ईश्वर ने  अपनी आत्मा से एक ही बार में पुरोहित, राजा और नबी रूप में अभिषित्क कर दिया। इस तरह से येसु ने इस्राएल की आशा जो हम पुरोहित राजा और नबी में पाते हैं, को पूर्ण कर दिया।  

मित्रो हमने कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अन्तर्गत जानकारी प्राप्त की काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में वर्णित येसु ख्रीस्त पर हमारा विश्वास के बारे में । अगले सप्ताह भी हम जानकारी करना जारी रखेंगे आदि येसु ख्रीस्त पर हमारा विश्वास के बारे में।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 








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